नई दिल्ली — अमेरिका और चीन के बीच फिर से बढ़ते व्यापारिक तनाव के बीच एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया है। व्हाइट हाउस ने पुष्टि की है कि इस सप्ताह अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच Tariff और व्यापार असंतुलन को लेकर वार्ता होगी। यह बातचीत वैश्विक बाजारों के लिए अहम मानी जा रही है, क्योंकि इसका असर दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ सकता है।
फिर गहराया व्यापारिक तनाव
हाल के वर्षों में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध में कुछ हद तक ठहराव आया था, लेकिन कुछ मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राजनीति में फिर से सक्रिय होने और व्यापार नीति को लेकर तीखे बयान देने के बाद से हालात फिर तनावपूर्ण हो गए हैं।
ट्रंप ने हाल ही में चीन पर “शोषणकारी व्यापार नीतियों” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा,
“हम अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और इनोवेशन की रक्षा करेंगे। चीन के साथ व्यापार में अमेरिका को वर्षों से नुकसान हो रहा है।”
इसके जवाब में, चीन ने अमेरिका पर “आर्थिक गुंडागर्दी” का आरोप लगाया और दोहराया कि वह वैश्विक व्यापार नियमों के तहत निष्पक्ष व्यवहार चाहता है।
बैठक का एजेंडा: क्या होंगे मुख्य मुद्दे?
व्हाइट हाउस के अनुसार, यह उच्च-स्तरीय बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से होगी, जिसमें निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा की जाएगी:
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आयात-निर्यात पर शुल्क (टैरिफ) को कम करने की संभावनाएं
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टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण
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व्यापार घाटा और विनिर्माण क्षेत्र में असंतुलन
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चीन में अमेरिकी कंपनियों की स्थिति और निवेश सुरक्षा
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AI और डिजिटल ट्रेड को लेकर भविष्य की नीतियाँ
व्हाइट हाउस प्रवक्ता के अनुसार,
“यह बैठक सिर्फ दो देशों के संबंधों को सुधारने का प्रयास नहीं है, बल्कि वैश्विक व्यापार स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।”
वैश्विक असर: बाजारों में हलचल
बैठक की घोषणा के बाद से ही वैश्विक स्टॉक मार्केट्स में हलचल देखी जा रही है। वॉल स्ट्रीट, हांगकांग और टोक्यो में सूचकांक ऊपर-नीचे हो रहे हैं। निवेशकों को उम्मीद है कि अगर वार्ता सकारात्मक रही, तो व्यापार पर लगे शुल्कों में ढील मिल सकती है, जिससे सप्लाई चेन स्थिर होगी।
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ट्रंप और जिनपिंग के बीच कोई समझौता होता है तो वह खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो, फार्मास्युटिकल और AI सेक्टर के लिए लाभकारी हो सकता है।
चीन की प्रतिक्रिया: संतुलित रुख
चीनी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि बीजिंग “संवाद के लिए तैयार है, लेकिन अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा।” चीन ने यह भी दोहराया कि व्यापार विवाद सुलझाने के लिए दबाव या धमकी नहीं, बल्कि मूल्य आधारित वार्ता ही समाधान है।
ट्रंप की रणनीति: फिर से ‘अमेरिका फर्स्ट’?
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में दिए गए भाषणों में फिर से अपने पुराने नारे “अमेरिका फर्स्ट” को दोहराया है और वादा किया है कि वे अमेरिकी नौकरियों को देश में वापस लाएंगे। उनका कहना है कि चीन को उसी भाषा में जवाब देना जरूरी है, जिसमें वह समझता है।
ट्रंप प्रशासन के दौरान शुरू हुई टैरिफ नीति को ही उन्होंने अमेरिका की “प्रेरक वापसी” का आधार बताया है।
पूर्व वार्ताओं से सबक
यह पहला मौका नहीं है जब ट्रंप और जिनपिंग आमने-सामने होंगे। 2018-19 में दोनों नेताओं के बीच कई बार जी-20 समिट्स और द्विपक्षीय मीटिंग्स में बातचीत हो चुकी है। हालांकि, उन बैठकों से मिले परिणाम मिश्रित रहे थे — कुछ टैरिफ कम हुए तो कुछ नए भी लगे।
इस बार उम्मीद की जा रही है कि दोनों पक्ष ज्यादा प्रैक्टिकल और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाएंगे।
निगाहें टिकी हैं इस वार्ता पर
दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं महंगाई, सप्लाई चेन संकट और आर्थिक मंदी के खतरे से जूझ रही हैं। ऐसे में अमेरिका और चीन के बीच यह वार्ता बहुत निर्णायक साबित हो सकती है।
यदि यह बैठक सफल होती है, तो यह वैश्विक व्यापार में स्थिरता, निवेश और आपसी भरोसे को बढ़ावा दे सकती है। अन्यथा, टैरिफ और जवाबी टैरिफ की नई लहर से वैश्विक बाजार एक बार फिर संकट में आ सकते हैं।