Monday, June 9

 E-Two Wheeler Market में दोे साल में 550 प्रतिशत का विष्‍फोटक डिमांड पैदा वाली ओला कंपनी का बाजार में शेयर इस साल घटकर तीसरे नंबर पर आ गया है। विशेेषज्ञों की मानें तो ओला ने ई-टूव्‍हीलर के मार्केट में ऐतिहासिक बूम तो क्रिएट किया लेकिन उसे संभालकर नहीं रख पाई। ग्राहकों को दुनिया की सबसे बडी स्कूटर फैक्ट्री (फ्यूचर फाउंड्री) के दावे, विशाल उत्पादन लक्ष्यों, आक्रामक मार्केटिंग, और बिग सेलेब्रिटी एंडोेर्समेंट के अलावा गाडी में ऐसे फीचर्स लाए जिसनेे मार्केट में विस्‍फोेटक हालात पैदा किया । ओला ने इसको दो साल भनाया भी लेकिन जो डिमांड पैदा हुई उसके हिसाब से गाडियों की  मैन्‍यूफैक्‍चरिंग नहीं हो पाई। नतीजा डिलीवरी महीनों लेट होने लगी। ओला के बनाए मार्केट को टूव्‍हीलर सेगमेंट के दो पुराने प्‍लेयर टीवीएस और बजाज ने अपने वृहद डीलर नेटवर्क के दम पर भुनाया और देश की टॉप टू कंपनी बनकर उभर गई। आईए समझते हैं कि ओला ने कौन सी बडी गलतियां की जिसके कारण कंपनी की सेल एक साल में 60 फीसदी गिर गई… 

FINANCIAL TALK DESK

ओला ने जब  वित्तीय वर्ष 2020-21 (FY21) भारत में ई-टू-व्हीलर (ई2डब्ल्यू) की कुल बिक्री लगभग 1.44 लाख यूनिट थी। इस समय बाज़ार में ओकिनावा, हीरो इलेक्ट्रिक, अम्पियर और एथर एनर्जी जैसी कंपनियों का दबदबा था। इनकी गति धीमी थी और उत्पादों में तकनीकी नवाचार सीमित था।  यह एक अपरिपक्व और छोटा बाज़ार था, जो मुख्य रूप से कम गति वाले स्कूटरों और सब्सिडी पर निर्भर था। उपभोक्ता जागरूकता और इंफ्रास्ट्रक्चर भी काफी कमज़ोर था। ओला ने अपने प्रोडक्‍ट में इन तमाम कमियों को दूर कर यूनीक फीचर्स के साथ जब बाजार में प्रवेश किया तो जैसे भूचाल आ गया। अगस्त 2021 में लॉन्च  दुनिया की सबसे बड़ी स्कूटर फैक्ट्री (फ्यूचरफाउंड्री) के दावे और विशाल उत्पादन लक्ष्यों के साथ  बड़े सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट (अनिल कपूर), अच्छी परफॉर्मेंस (0-40 km/h 3.0 सेकंड), बड़ा टचस्क्रीन, “हाइपरमोड” जैसे फीचर्स के साथ FAME-II सब्सिडी, बैटरी की 7 साल वारंटी आदि के कारण जो बाज़ार में हलचल पैदा हुई तो इसका नतीजा हुआ कि लोगों ने तेजी से ऑनलाइन बुकिंग शुरू की तो बुकिंग इतनी अधिक आई कि पहले कुछ महीने में ही बाजार ढाई सौ प्रतिशत की बूम करके  2.47 लाख यूनिट पर वहुंच गया। ओला यह बूम संभालने के लिए तैयार ही नहीं था।  उसने 14,371 यूनिट्स की डिलीवरी से शुुरूवात की जो काफी धीमी थी। नतीजा एक महीने में डिलीवरी का वादा करके कंपनी ग्राहकों को 3 से 4 माह तक डिलीवरी नहीं देे पा रही थी। इस बीच सडकों पर जब गाडिंया दौडने लगी तो लोगों की बुकिंग विसफोटक स्‍तर पर बढकर  2023 तक 7.27 लाख यूनिट्स  पहुंच गया। ओला बाज़ार लीडर बन गया, 1.5 लाख यूनिट्स डिलीवरी देकर 30% से अधिक हिस्सेदारी हासिल तो की लेकिन बुकिंग विस्‍फोट ने डिलीवरी सिस्‍टम को और डिले कर दिया। लिहाजा झुझलाए ग्राहकों ने बुकिंग कैंंसल करना शुरू कर दूसरी कंपनियों का रुख करना शुरू किया। ओला के खिलाफ फैले इस असंतोष और डिमांड में बूम ने TVS और Bajaj जैसे बड़े पारंपरिक खिलाड़ियों को तेजी से आगे बढ़ने के लिए मजबूर किया। TVS ने आई क्‍यूब में ओला की तमाम खामियों को दूूर कर वृहद रेंज के साथ एक सप्‍ताह में डिलीवरी देनी शुरू की, तो बजाज ने अपने पुराने स्‍कूटर सेगमेंट चेतक को नोस्‍टाल्जिया के साथ लांच किया। जिससे यूथ के साथ उम्र दराज ग्राहकों का एक बडा हिस्‍सा चेतक के खाते चला गया।  

बाजार में जबरदस्‍त डिमांड : तीन साल पहले डेढ लाख गाडियों का मार्केट 2024 में 550% से अधिक की वृद्धि 9.46 लाख यूनिट्स  (SMEV डेटा) पहुंच गया। वहीं इस साल  2025 में बाज़ार वार्षिक 10-12 लाख यूनिट्स के स्तर पर पहुँच गया है और स्थिर वृद्धि जारी है।

मौजूदा बाज़ार मूल्य (अनुमान):  यूनिट वॉल्यूम:- 10-12 लाख प्रति वर्ष, 

 मौद्रिक मूल्य: औसत बिक्री मूल्य (ASP) ~₹1.1-1.3 लाख मानने पर, बाज़ार का वार्षिक आकार ₹11,000 करोड़ से ₹15,600 करोड़ (लगभग $1.3 – $1.9 बिलियन) है। यह आकार तेजी से बढ़ रहा है।

 वर्तमान नेतृत्व : 

  1: TVS iQube (~32-35% शेयर)

  2: Bajaj Chetak (20-25% शेयर)

 3: Ola Electric (15-20% शेयर )

 4: Ather Energy (10-12% शेयर)

 शेष: ओकिनावा, हीरो इलेक्ट्रिक, विडा (हीरो), अम्पियर, वीडियोकॉन आदि।

 ओला के पिछडने के 7 प्रमुख कारण: 

  1. गंभीर गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता का संकट :  व्यापक शिकायतें: ग्राहकों और मीडिया से ओला S1 सीरीज़ स्कूटरों में बैटरी खराबी, रेंज कम होना, सॉफ्टवेयर ग्लिचेज (हैंगिंग/रिस्टार्ट), अनियोजित ब्रेक लगना, वाहन का बंद हो जाना (सडन स्टॉपिंग), और बिल्ड क्वालिटी (पैनल गैप्स, पेंट चिपकना) जैसी गंभीर समस्याओं की भरमार रिपोर्ट्स आई हैं।  सोशल मीडिया पर इन मुद्दों ने तेज़ी से वायरल होकर ओला की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए। फायर इंसीडेंट्स (हालाँकि अपेक्षाकृत कम) ने भी डर बढ़ाया।  शुरुआती डिलीवरी में जल्दबाजी और पर्याप्त टेस्टिंग की कमी से ये समस्याँ उत्पन्न हुई जिसने ग्राहकाें के बीच ओला को लेकर विश्‍वसनीयता का संकट पैदा किया  और लोग इसका विकल्‍प तलाशने लगे। 
  1. अपर्याप्त सेवा एवं रखरखाव (सर्विस) नेटवर्क:   ओला ने डीलरशिप में न जाकर सीधेे ग्राहकों को ऑनलाइन गाडी बेचनी शुुरू की थी। सर्विसिंग और कोई समस्‍या आने पर सर्विस सेंटरों की भारी कमी हो गई। विशेषकर टियर-2, टियर-3 शहरों और ग्रामीण इलाकों में ग्राहकों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। सर्विस सेेंटर ओवरलोेडेड होने लगे औैर सर्विस स्लॉट की कमी और स्पेयर पार्ट्स की अनुपलब्धता के कारण मरम्मत में हफ्तों लग जाते हैं।  कई सर्विस सेंटरों के तकनीशियन जटिल इलेक्ट्रिक इश्यूज को ठीक करने में सक्षम नहीं हैं। शिकायतों के समाधान में देरी और ग्राहकों के साथ खराब संवाद भी ओला के लिए नुुकसानदायक साबित हुए। 
  1. स्‍थापित खिलाडियों नेे पैदा की कडी प्रतिस्पर्धा: स्थापित खिलाड़ियों  TVS (iQube) और Bajaj (Chetak) जैसे विश्वसनीय पारंपरिक दोपहिया निर्माता अपने मजबूत डीलर नेटवर्क, ब्रांड ट्रस्ट और बेहतर बिल्ड क्वालिटी के साथ बाज़ार में उतरे तो ग्राहकों को ओला का ि‍विकल्‍प मिल गया और  उनकी बिक्री तेजी से बढ़ी। Ather Energy का 450X मॉडल बेहतर गुणवत्ता, परफॉरमेंस और उच्च ग्राहक संतुष्टि के लिए जाना जाता है। वहीं वीडियोकॉन, ओकिनावा, हीरो इलेक्ट्रिक आदि ने विभिन्न कीमतों और खंडों में प्रतिस्पर्धा बढ़ाई तो ग्राहक इन कंपनियों की ओर मुड  गए।
  2. मूल्य निर्धारण (प्राइसिंग) रणनीति और सब्सिडी में बदलाव:कीमत में वृद्धि: FAME-II सब्सिडी में कटौती और बैटरी लागत में वृद्धि के कारण ओला ने अपने स्कूटरों की कीमतें बढ़ा दीं। इससे किफायती सेगमेंट में प्रतिस्पर्धा कठिन हो गई। वहीं  प्रतिद्वंद्वी (विशेषकर TVS iQube) ने अधिक आकर्षक मूल्य बिंदु पेश किए। सरकारी योजनाओं (FAME-II/III) में बदलाव से खरीदारों में अनिश्चितता बढ़ी।
  3. प्रारंभिक बिक्री में अति-उत्साह और स्थिरता की कमी:  लॉन्च के समय जमा किए गए बड़े ऑर्डर बैकलॉग की डिलीवरी हो जाने के बाद बिक्री सामान्य स्तर पर आ गई।  प्रतिस्पर्धियों के विपरीत, ओला ने हाल में कोई नया प्रमुख मॉडल या प्रमुख अपग्रेड पेश नहीं किया।
  4. डीलर असंतोष और खुदरा रणनीति:  ओला के प्राथमिक रूप से ऑनलाइन और अपने एक्सपीरियंस सेंटर्स के माध्यम से बिक्री करने पर जोर ने पारंपरिक डीलरों को नाराज़ किया। कुछ डीलरों ने कम बिक्री, उच्च इन्वेंट्री लागत और सर्विस चुनौतियों के कारण लाभहीनता की शिकायत की। कंपनी द्वारा डीलरों पर अधिक स्टॉक थोपे जाने की खबरें भी आई।

 

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