नई दिल्ली। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका, और सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था भारत के बीच आने वाले दिनों में एक बड़े व्यापारिक समझौते की संभावना है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड Trump ने इंडोनेशिया के साथ ‘जीरो टैरिफ डील’ को अंतिम रूप देने के बाद अब भारत को अगला संभावित साझेदार बताया है। लेकिन इस डील की शर्तें जितनी आकर्षक दिखाई देती हैं, उतनी ही खतरनाक भी हैं—खासतौर पर उन देशों के लिए जो अमेरिकी दबाव में आने को तैयार नहीं।
इंडोनेशिया ने झुककर किया समझौता
ट्रंप की बहुचर्चित ‘जीरो टैरिफ डील’ का सबसे ताजा उदाहरण इंडोनेशिया है। नाम तो ‘जीरो टैरिफ’ है, लेकिन इस डील की हकीकत कुछ और है। दरअसल, अमेरिका को इंडोनेशिया के बाजार में टैरिफ-फ्री पहुंच मिल गई है, जबकि इंडोनेशियाई वस्तुओं पर अमेरिका ने आयात शुल्क 10% से बढ़ाकर 19% कर दिया है। यानी डील पूरी तरह से एकतरफा लाभ देती है—अमेरिका को।
ट्रंप ने अप्रैल 2025 में धमकी दी थी कि वह इंडोनेशिया से आने वाले सामान पर 32% टैरिफ लगाएंगे। लेकिन बातचीत के बाद ये टैरिफ 19% पर तय हुआ। बदले में इंडोनेशिया ने अमेरिका से:
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15 अरब डॉलर के एनर्जी प्रोडक्ट्स,
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50 बोइंग एयरक्राफ्ट,
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और 4.5 अरब डॉलर के कृषि उत्पाद
खरीदने का वादा किया।
ट्रंप की यह रणनीति अमेरिकी व्यापार घाटा कम करने और घरेलू कंपनियों को विदेशी बाजार में ‘फ्री एंट्री’ दिलाने की है। अमेरिका की नीति सीधी है—”तुम हमारे माल पर कर लगाओ, हम तुम पर दबाव बनाएंगे।”
अब भारत की बारी?
इंडोनेशिया की यह डील अब भारत के लिए चेतावनी की घंटी बन चुकी है। ट्रंप ने खुद कहा है कि अमेरिका अब उन देशों तक पहुंच बना रहा है, जहां पहले उसका प्रभाव सीमित था। भारत को लेकर उन्होंने साफ संकेत दिए हैं कि एक समान डील जल्द हो सकती है।
भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से व्यापारिक वार्ताएं चल रही हैं। ट्रंप का यह भी दावा है कि भारत के साथ डील बहुत नजदीक है और यह इंडोनेशिया की तरह हो सकती है। इसका मतलब यह है कि भारत को भी अमेरिकी सामान पर कम या जीरो टैरिफ देना पड़ सकता है, जबकि अमेरिकी बाजार में भारत को अधिक शुल्क देना होगा।
भारत की रणनीति: “हम झुकेंगे नहीं”
भारत इस बार ट्रंप की आक्रामक रणनीति से सतर्क है। भारत ने साफ कर दिया है कि डेयरी और चावल सेक्टर को किसी भी डील से बाहर रखा जाएगा। भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों पर कुछ हद तक टैरिफ में ढील दे सकता है, लेकिन ऑटोमोबाइल और डेयरी पर अपने सख्त रुख से पीछे नहीं हटेगा।
भारतीय वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक वार्ताकार दल जल्द ही वॉशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों के साथ चर्चा करेगा। उनका उद्देश्य है—ऐसी डील करना जिसमें भारत की घरेलू कंपनियों और किसानों को नुकसान न हो, और अमेरिका को भी वाजिब बाजार पहुंच मिले।
भारत अब सिर्फ व्यापार नहीं कर रहा—रणनीति भी कर रहा है।
जोखिम भी, अवसर भी
ट्रंप प्रशासन भारत पर 15% से 20% तक का आयात शुल्क लगाने की तैयारी में है, जो कि पहले प्रस्तावित 26% से कम है। यदि भारत इस दर पर सहमत होता है, तो वह बांग्लादेश (35%) और म्यांमार (40%) जैसे प्रतिस्पर्धियों की तुलना में अमेरिकी बाजार में मजबूत स्थिति में होगा।
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यदि ट्रंप अन्य देशों पर भारी टैरिफ लगाते हैं, तो भारत के लिए अमेरिका में कपड़ा, रसायन और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने का अवसर बन सकता है।
लेकिन साथ ही जोखिम यह है कि यदि भारत ने अमेरिकी कंपनियों को जीरो टैरिफ पर प्रवेश दे दिया, तो भारतीय लघु और मध्यम उद्योग (MSME) पर बड़ा संकट आ सकता है। अमेरिका के सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले ब्रांड भारतीय बाजार में बाढ़ की तरह छा सकते हैं।
1 अगस्त—ट्रंप की डेडलाइन
ट्रंप ने भारत के साथ व्यापार डील के लिए 1 अगस्त 2025 की समयसीमा तय की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस डेडलाइन से पहले कोई समझौता करता है या अमेरिका के दबाव के खिलाफ अपनी ‘निर्णायक पहल’ पर कायम रहता है।
क्या भारत को समझौता करना चाहिए?
अगर भारत यह डील करता है तो—
- अमेरिका जैसे बड़े बाजार में भारत की पहुंच बढ़ेगी।
- भारत अपने तकनीकी और फार्मा सेक्टर को तेजी से वैश्विक स्तर पर बढ़ा सकेगा।
- चीन के मुकाबले भारत की स्थिति और मजबूत हो सकती है।
अगर भारत यह डील नहीं करता है तो—
- भारत पर अधिक टैरिफ लग सकता है, जिससे एक्सपोर्ट प्रभावित होगा।
- ट्रंप प्रशासन भारत के साथ अन्य रणनीतिक सहयोगों पर दबाव बना सकता है।
- अमेरिकी लॉबी भारत को व्यापारिक दृष्टि से ‘अनगिनर्ड’ कर सकती है।
भारत का रुख: कूटनीति के साथ विवेक
भारत जानता है कि यह सिर्फ एक आर्थिक डील नहीं, बल्कि रणनीतिक युद्ध है। भारत की कूटनीति अब भावनाओं पर नहीं, तथ्य, संतुलन और स्वाभिमान पर टिकी है। भारत को एक ऐसा समझौता चाहिए, जिससे न तो उसकी घरेलू अर्थव्यवस्था कमजोर हो, और न ही वह वैश्विक व्यापार से बाहर हो।
भारत न तो इंडोनेशिया है और न ही वह दबाव में झुकने वाला है। भारत की कोशिश यही है कि अमेरिका को व्यापार में साझेदारी मिले, लेकिन अपनी शर्तों पर।
‘जीरो टैरिफ डील’ एक धोखा हो सकती है—अगर आप तैयार नहीं हैं।
ट्रंप की यह नीति अमेरिका के लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह तलवार की धार पर चलने जैसा है। भारत को अब फैसला करना है—क्या वह वैश्विक बाजार में जगह बनाए रखने के लिए अमेरिकी दबाव में झुकेगा, या अपने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के मंत्र को आगे बढ़ाते हुए एक संतुलित सौदा करेगा।