नई दिल्ली, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए स्टील और एल्युमिनियम पर Tariff को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया है, जो बुधवार से प्रभावी हो गया है। इस निर्णय का उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करना और सस्ते विदेशी धातुओं की डंपिंग को रोकना है। हालांकि, इस कदम से भारत के स्टील और एल्युमिनियम निर्यात पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है, जिसका कुल मूल्य लगभग ₹39,000 करोड़ है।
भारत के निर्यात पर संभावित प्रभाव
भारत के इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद (EEPC) के अनुसार, भारत के इंजीनियरिंग वस्तुओं के निर्यात में स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों की हिस्सेदारी लगभग 25% है। EEPC के अध्यक्ष पंकज चड्ढा ने कहा कि अमेरिका के इस टैरिफ वृद्धि से भारत के लगभग $5 बिलियन (₹39,000 करोड़) के इंजीनियरिंग निर्यात प्रभावित हो सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय एल्युमिनियम उत्पादकों पर इसका प्रभाव अधिक होगा, क्योंकि भारत अपने कुल एल्युमिनियम उत्पादन का लगभग 40% निर्यात करता है, जिसमें से 6-8% अमेरिका को जाता है।
भारतीय उद्योग की प्रतिक्रिया
भारत के स्टील सचिव संदीप पाउंडरिक ने कहा कि अमेरिका को भारत का स्टील निर्यात कुल उत्पादन का एक छोटा हिस्सा है, इसलिए इस टैरिफ वृद्धि का सीधा प्रभाव सीमित होगा। हालांकि, उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका में टैरिफ वृद्धि के कारण अन्य देशों से सस्ते स्टील और एल्युमिनियम भारत में डंप हो सकते हैं, जिससे घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कीमतों पर दबाव पड़ेगा।
सरकार की रणनीति और संभावित समाधान
भारतीय निर्यातकों ने सरकार से आग्रह किया है कि वह अमेरिका से आयातित कुछ वस्तुओं पर शुल्क कम करे, ताकि व्यापार वार्ता में भारत को बेहतर स्थिति मिल सके। इसके अलावा, भारत और अमेरिका के बीच विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है, ताकि विवाद का समाधान निकाला जा सके।
वैश्विक प्रतिक्रिया और आगे की राह
अमेरिका के इस निर्णय से यूरोपीय संघ, कनाडा और मैक्सिको जैसे देशों ने भी प्रतिक्रिया दी है। यूरोपीय संघ ने संभावित प्रतिशोधी टैरिफ की घोषणा की है, जबकि कनाडा और मैक्सिको ने अमेरिका के इस कदम की आलोचना की है।
भारत के लिए, यह आवश्यक है कि वह अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाए और घरेलू उद्योगों को समर्थन प्रदान करे, ताकि इस टैरिफ वृद्धि के प्रभाव को कम किया जा सके। सरकार को चाहिए कि वह निर्यातकों को वित्तीय सहायता, तकनीकी उन्नयन और नए बाजारों तक पहुंच प्रदान करे।